रोज़ा और एतिकाफ़ के इजमाई मसाइल

तहरीर: हाफ़िज़ नदीम ज़हीर हाफ़िज़ुल्लाह


❀ इजमा है कि जिसने रमजान की हर रात रोज़े की नियत की और रोज़ा रखा उसका रोज़ा मुकम्मल है।

❀ इजमा है कि सहरी खाना मुस्तहब है।

❀ इजमा है कि रोज़ेदार को बेइख़्तियार (अपने आप) से उल्टी आ जाये तो कोई हर्ज नहीं।

❀ इजमा है कि जो रोज़ेदार जान-बूझ कर उल्टी करे उसका रोज़ा बातिल है।

❀ इजमा है कि रोज़ेदार (अपनी) राल और (अपना) थूक निगल जाये तो कोई हर्ज नहीं।

❀ इजमा है कि औरत को लगातार दो महीने के रोज़े रखने हों और बीच में अय्याम शुरू हो जाएं तो पाकी के बाद पिछले रोज़ो की बुनयाद पर रोज़े रखेगी।

❀ इजमा है कि अधेड़ उमर, बूढ़े जो रोज़े की ताक़त नहीं रखते रोज़ा नहीं रखेंगे (बल्कि फ़िदया अदा करेंगे)।

❀ इजमा है कि एतिकाफ़ लोगो पर फ़र्ज़ नहीं, हाँ अगर कोई अपने ऊपर लाज़िम कर ले तो उस पर वाजिब है।

❀ इजमा है कि एतिकाफ़ मस्जिदे हराम, मस्जिदे रसूल और बैतूल मक़दस में जायज़ है।

❀ इजमा है कि एतिकाफ़ करने वाला एतिकाफ़ करने की जगह से पेशाब, पाख़ाने के लिए बाहर जा सकता है।

❀ इजमा है कि एतिकाफ़ करने वाले के लिए मुबाशरत (बीवी से बोस ओ किनार) मना है।

❀ इजमा है कि एतिकाफ़ करने वाले ने अपनी बीवी से जान-बूझ हक़ीक़ी मुजामिअत (जिमाअ) कर ली तो उसने एतिकाफ़ फ़ासिद कर दिया।

(अल-इजमा लिब्ने अल-मुन्ज़िर पेज नंबर 47,48)

असल मज़मून के लिए देखिए फ़तावा इल्मिया अल-मारूफ़ तौज़ीहुल अहकाम (भाग2पेज नंबर158) लिश-शेख़ हाफ़िज़ ज़ुबैर अली ज़ई रहमतुल्लाह अलैह।

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हिन्दी तर्जुमा: मुहम्मद शिराज़ (कैफ़ी)

तहरीर: हाफ़िज़ नदीम ज़हीर हाफ़िज़ुल्लाह

मुख्य लेख: मासिक हदीस हज़रो नं। 119 पृष्ठ 25 (ماہنامہ الحدیث حضرو شمارہ 119 صفحہ 25)

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